परिच्छेद १२ - दक्षिणेश्वर मन्दिर में बलराम आदि के साथ -

बलराम को शिक्षा

आज मंगलवार है, दिन का पिछला पहर, २४ अक्टूबर। तीन-चार बजे होंगे। श्रीरामकृष्ण मिठाई के ताक के पास खड़े हैं। बलराम और मास्टर कलकत्ते से एक ही गाड़ी पर चढ़कर आए हैं और प्रणाम कर रहे हैं। प्रणाम करके बैठने पर श्रीरामकृष्ण हँसते हुए कहने लगे, “ताक पर से कुछ मिठाई लेने गया था, मिठाई पर हाथ रखा ही था कि एक छिपकली बोल उठी, तुरन्त हाथ हटा लिया!” (सब हँसे।)

लक्षण। सत्यभाषण। कामिनी-कांचन ही माया है।

श्रीरामकृष्ण - यह सब मानना चाहिए। देखो न, राखाल बीमार पड़ गया; मेरे भी हाथ-पैर में दर्द हो रहा है। क्या हुआ, सुनो। सुबह को मैंने उठते ही राखाल आ रहा है सोचकर अमुक का मुख देख लिया था। (सब हँसते हैं।) हाँ जी, लक्षण भी देखना चाहिए। उस दिन नरेन्द्र एक काने लड़के को लाया था, - उसका मित्र है; आँख बिलकुल कानी नहीं थी; जो हो, मैंने सोचा, - नरेन्द्र यह आफत का पुतला कहाँ से लाया!

“और एक आदमी आता है; मैं उसके हाथ की कोई चीज नहीं खा सकता। वह आफिस में काम करता है, बीस रुपया महीना पाता है और बीस रुपया न जाने कैसा झूठा बिल लिखकर पाता है। वह झूठ बोलता है, इसलिए आने पर उससे बहुत नहीं बोलता। कभी तो दो-दो चार-चार; दिन आफिस जाता ही नहीं, यहीं पड़ा रहता है। किस मतलब से, जानते हो? - मतलब यह कि किसी से कह-सुन दूँ तो दूसरी जगह नौकरी हो जाय।”

बलराम का वंश परम वैष्णवों का वंश है। बलराम के पिता वृद्ध हो गए हैं, - परम वैष्णव हैं। सिर पर शिखा है, गले में तुलसी की माला है, हाथ में सदा ही माला लिए जप करते रहते हैं। उड़ीसा में इनकी बहुत बड़ी जमींदारी है और कोठार, श्रीवृन्दावन तथा और भी कई जगह श्रीराधाकृष्ण-विग्रह की सेवा होती है और धर्मशाला भी है। बलराम अभी पहले-पहल आने लगे हैं। श्रीरामकृष्ण बातों बातों में उन्हें उपदेश दे रहे हैं।

श्रीरामकृष्ण - उस दिन अमुक आया था। सुना है, उस कालीकलूटी स्त्री का गुलाम है। - ईश्वर- दर्शन क्यों नहीं होते? क्योंकि बीच में कामिनी कांचन की आड़ जो है।

पूर्व कथा बर्दवान के मार्ग में देश यात्रा नकुड़ आचार्य का गाना सुनना।

“अच्छा, कहो तो मेरी क्या अवस्था है? उस देश को जा रहा था, बर्दवान से उतरकर; बैलगाड़ी पर बैठा था - ऐसे समय जोर की आँधी चली और पानी बरसने लगा। इधर न जाने कहाँ से गाड़ी के पीछे कुछ आदमी आ गए। मेरे साथी कहने लगे, ये डाकू हैं। तब मैं ईश्वर का नाम जपने लगा, परन्तु कभी तो राम राम जपता और कभी काली काली, कभी हनुमान हनुमान, - सब तरह से जपने लगा; कहो तो यह क्या है?”

श्रीरामकृष्ण क्या ऐसा कह रहे हैं कि ईश्वर एक है और उसके नाम असंख्य, भिन्न धर्मावलंबी वा सम्प्रदायों के लोग क्या ऐसेही मिथ्या झगड़ा करके मर रहे हैं?

(बलराम से) - “कामिनी-कांचन ही माया है। इसके भीतर अधिक दिन तक रहने से होश चला जाता है, - ऐसा जान पड़ता है कि खूब मजे में हैं। मेहतर विष्ठा का भार ढोता है; ढोते ढोते फिर घृणा नहीं होती। भगवन्नामगुण-कीर्तन का अभ्यास करने ही से भक्ति होती है। (मास्टर से) इसमें लजाना नहीं चाहिए। लज्जा, घृणा और भय इन तीनों के रहते ईश्वर नहीं मिलता।

“उस देश में बड़ा अच्छा कीर्तन करते हैं, - खोल (मृदंग) लेकर कीर्तन करते हैं। नकुड़ आचार्य का गाना बड़ा अच्छा है। वृन्दावन में तुम्हारी ओर से सेवा होती है?”

बलराम - जी हाँ, एक कुंज है - श्यामसुन्दर की सेवा होती है।

श्रीरामकृष्ण - मैं वृन्दावन गया था। निधुवन बड़ा सुन्दर स्थान है।

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