परिच्छेद ४८ - बलराम के मकान पर

ईश्वरदर्शन की बात। जीवन का उद्देश्य

एक दिन, १८ अगस्त १८८३ ई. , शनिवार को तीसरे पहर श्रीरामकृष्ण बलराम के घर आए हैं। आप अवतार-तत्त्व समझा रहे हैं।

श्रीरामकृष्ण (भक्तों के प्रति) - अवतार लोकशिक्षा के लिए भक्ति और भक्त लेकर रहते हैं। मानो छत पर चढ़कर सीढ़ी से आते-जाते रहना। जब तक ज्ञान नहीं होता, जब तक सभी वासनाएँ नष्ट नहीं होतीं, तब तक दूसरे लोग छत पर चढ़ने के लिए भक्तिपथ पर रहेंगे। सब वासनाएँ मिट जाने पर ही छत पर पहुँचा जाता है। दुकानदार का हिसाब जब तक नहीं मिलता, तब तक वह नहीं सोता। खाते का हिसाब ठीक करके ही सोता है!

(मास्टर के प्रति) “मनुष्य यदि डुबकी लगाए तो अवश्य सफल होगा। डुबकी लगाने पर सफलता निश्चित है।

“अच्छा, केशव सेन, शिवनाथ, - ये लोग जो उपासना करते हैं, वह तुम्हें कैसी लगती है?”

मास्टर - जी, जैसा आप कहते हैं, - वे बगीचे का ही वर्णन करते हैं, परन्तु बगीचे के मालिक के दर्शन करने की बात बहुत कम कहते हैं। प्रायः बगीचे के वर्णन से ही प्रारम्भ और उसी में समाप्ति हो जाती है।

श्रीरामकृष्ण - ठीक। बगीचे के मालिक की खोज करना और उनसे बातचीत करना, यही असल काम है। ईश्वर का दर्शन ही जीवन का उद्देश्य है।*

बलराम के घर से अब अधर के घर पधारे हैं। सायंकाल के बाद अधर के बैठकघर में नाम-संकीर्तन और नृत्य कर रहे हैं; कीर्तनकार वैष्णवचरण गाना गा रहे हैं। अधर, मास्टर, राखाल आदि उपस्थित हैं।

कीर्तन के बाद श्रीरामकृष्ण भाव में विभोर होकर बैठे हैं। राखाल से कह रहे हैं, “यहाँ का जल श्रावण मास का जल नहीं है। श्रावण मास का जल काफी तेजी के साथ आता है और फिर निकल जाता है। यहाँ पर पाताल से निकले हुए स्वयम्भू शिव हैं, स्थापित किए हुए शिव नहीं हैं। तू क्रोध में दक्षिणेश्वर से चला आया; मैंने माँ से कहा, ‘माँ, इसके अपराध पर ध्यान न देना।’

क्या श्रीरामकृष्ण अवतार हैं? स्वयम्भू शिव हैं?

फिर भावविभोर होकर अधर से कह रहे हैं - “भैया, तुमने जो नाम लिया था, उसी का ध्यान करो।” ऐसा कहकर अधर की जिव्हा अपनी उँगली से छूकर उस पर न जाने क्या लिख दिया। क्या यही अधर की दीक्षा हुई?

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