परिच्छेद २१ - मारवाड़ी भक्तों के साथ
Last updated
Was this helpful?
Last updated
Was this helpful?
तीसरा पहर बीत गया है। मास्टर तथा दो-एक भक्त बैठे हैं। कुछ मारवाड़ी भक्तों ने आकर प्रणाम किया। वे कलकत्ते में व्यापार करते हैं। उन्होंने श्रीरामकृष्ण से कहा, “आप हमें कुछ उपदेश कीजिए।” श्रीरामकृष्ण हँस रहे हैं।
श्रीरामकृष्ण (मारवाड़ी भक्तों के प्रति) - देखो ‘मैं और मेरा’ दोनों अज्ञान हैं। ‘हे ईश्वर, तुम कर्ता हो और यह सब तुम्हारा है’ इसका नाम ज्ञान है। और ‘मेरा’ क्योंकर कहोगे? बगीचे का कर्मचारी कहता है, ‘मेरा बगीचा’, परन्तु कोई अपराध करने पर मालिक उसे निकाल देता है। उस समय ऐसा साहस नहीं होता कि वह आम की लकड़ी का बना अपना सन्दूक भी बगीचे से बाहर ले जाय! काम, क्रोध आदि जाने के नहीं। ईश्वर की और उनका मुँह घुमा दो। कामना, लोभ करना हो तो ईश्वर को पाने के लिए कामना, लोभ करो। विचार करके उन्हें भगा दो। हाथी जब दूसरों के केले के पेड़ खाने जाता है, तो महावत उसे अंकुश मारता है।
“तुम लोग तो व्यापार करते हो। जानते हो कि धीरे धीरे उन्नति करनी होती है। कोई पहले अण्डी पीसने की घानी खोलता है और फिर अधिक धन होने पर कपड़े की दूकान खोलता है। इसी प्रकार ईश्वर के पथ में आगे बढ़ना पड़ता है। बने तो बीच बीच में कुछ दिन निर्जन में रहकर उन्हें अच्छी तरह से पुकारो।
“फिर भी जानते हो? समय न होने पर कुछ नहीं होता। किसी किसी का भोगकर्म काफी बाकी रह जाता है। इसीलिए देरी होती है, फोड़ा कच्चा रहते चीरने पर हानि पहुँचाता है। पककर जब मुँह निकलता है, उस समय डाक्टर चीरता है। लड़के ने कहा था, ‘माँ, अब मैं सोता हूँ। जब मुझे शौच लगे तब तुम जगा देना।’, माँ ने कहा, ‘बेटा, शौच लगने पर तुम खुद ही उठ जाओगे मुझे उठाना न पड़ेगा।’ ”(सब हँसते हैं।)
मारवाडी भक्त और व्यापार में मिथ्या वचन रामनाम संकीर्तन
मारवाड़ी भक्तगण बीच बीचमें श्रीरामकृष्ण की सेवा के लिए मिठाई, फल, सुगंधि मिश्री आदि लाते हैं। परन्तु श्रीरामकृष्ण साधारणतः उन चीजों का सेवन नहीं करते। कहते हैं, वे लोग अनेक झूठी बातें कहकर धन कमाते हैं। इसलिए उपस्थित मारवाड़ियों को वार्तालाप के भीतर से उपदेश दे रहे हैं।
श्रीरामकृष्ण - देखो, व्यापार करने में सत्य की टेक नहीं रहती। व्यापार में तेजीमन्दी होती रहती है। नानक की कहानी में है, उन्होंने कहा, “असाधु की चीजें खाने गया तो मैंने देखा कि वे सब खून से लथपथ हो गयी हैं!’ साधु को शुद्ध चीज देनी चाहिए। मिथ्या उपाय से प्राप्त की हुई चीजें नहीं देनी चाहिए। सत्यपथ द्वारा ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है ।’
“सदा उनका नाम लेना चाहिए। काम के समय मन को उनके हवाले कर देना चाहिए। जिस प्रकार मेरी पीठ पर फोड़ा हुआ है, सभी काम कर रहा हूँ, परन्तु मन फोड़े में ही है। रामनाम लेना अच्छा है। जो राम दशरथ का बेटा है, उन्होंने जगत् की सृष्टि की है, वे सर्वभूतों में हैं। और वे अत्यन्त निकट हैं, वे ही भीतर और बाहर हैं।
“वही राम दशरथ का बेटा, वही राम घट-घट में लेटा। वही राम जगत् पसेरा वही राम सबसे न्यारा॥”